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रविवार, 11 सितंबर 2022

द्वारकाशारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष की आयु में हुए ब्रह्मलीन, पूरा जाने उनके बारे में


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द्वारकाशारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नहीं रहे। वे 99 वर्ष के थे। मध्य प्रदेश में जन्में शंकराचार्य ने जन्म प्रदेश में ही अपनी आखिरी सांस ली। स्वामी स्वरूपानंद अपने बयानों को लेकर खासी चर्चा में रहते थे।

  • ज्योतिर्मठ और शारदा पीठ के शंकराचार्य थे, कल नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में दी जाएगी समाधि

द्वारकाशारदापीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में उनका निधन हुआ। ज्योतिर्मठ और शारदा पीठ के शंकराचार्य थे, कल नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में दी जाएगी समाधि। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पास बद्री आश्रम और द्वारकापीठ की जिम्मेदारी थी। अपने आश्रम में ही उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को उनके बयानों को लेकर खूब चर्चा मिली। राम मंदिर से लेकर बेटियों के तर्पण के मामले में उनके बयान खासे चर्चा में रहे थे। उन्होंने कई बार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को भी घेरा था। आरएसएस के स्वरूप को बिगाड़ने पर भी करारा हमला बोला था। साथ ही, ताजमहल के नीचे शिवलिंग होने की बात कही है।

9 साल की उम्र में घर छोड़ धर्म यात्रा पर निकले
शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने बचपन में इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में इन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो काशी पहुंचे और यहां इन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली।

19 साल की उम्र में बने थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान हुआ तो स्वामी स्वरूपानंद भी आंदोलन में कूद पड़े। 19 साल की आयु में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्हें वाराणसी में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने कैद रखा गया। जगदगुरु शंकराचार्य का अंतिम जन्मदिन हरितालिका तीज के दिन मनाया गया था।

1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली
स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे। ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।

राम मंदिर के नाम पर दफ्तर बनाने का आरोप लगाया था
शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि न्यास के नाम पर विहिप और भाजपा को घेरा था। उन्होंने कहा था- अयोध्या में मंदिर के नाम पर भाजपा-विहिप अपना ऑफिस बनाना चाहते हैं, जो हमें मंजूर नहीं है। हिंदुओं में शंकराचार्य ही सर्वोच्च होता है। हिंदुओं के सुप्रीम कोर्ट हम ही हैं। मंदिर का एक धार्मिक रूप होना चाहिए, लेकिन यह लोग इसे राजनीतिक रूप देना चाहते हैं जो कि हम लोगों को मान्य नहीं है।

राम मंदिर ट्रस्ट में वासुदेवानंद सरस्वती को जगह देने पर नाराज थे
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को जगह देने पर भी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार फैसलों में वासुदेवानंद सरस्वती को न शंकराचार्य माना और न ही सन्यासी माना है। ज्योतिर्मठ पीठ का शंकराचार्य मैं हूं। ऐसे में प्रधानमंत्री ने ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को ट्रस्ट में जगह देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।

पीएम मोदी समेत कई नेताओं ने जताया दुख
पीएम नरेंद्र मोदी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर शोक जताते हुए उनके अनुयायियों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त कीं। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा- सनातन संस्कृति व धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित उनके कार्य सदैव याद किए जाएंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया- शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के शलाका पुरुष एवं सन्यास परम्परा के सूर्य थे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन को संत समाज की अपूर्णीय क्षति बताया है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने धर्म, अध्यात्म व परमार्थ के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

 

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