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जौनपुर। जनपद का मशहूर सौ साल पुराना अशरे-ए-अरबइन की मजलिस मुफ्ती हाउस मुफ्ती मोहल्ला में शुरू हो गई है जो कि 16 सितम्बर तक चलेगी, इसी सिलसिले में बुधवार को हुई मजलिस को कश्मीर से आये धर्मगुरु मौलाना ग़ुलाम रसूल नूरी ने सम्बोधित करते हुए उन्होंने दीन के अहकाम की पैरवी और इंसानियत के नाते जीने वाले तौर-तरीकों पर रोशनी डाली, साथ ही उन्होंने बताया कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो जान लेना नहीं बल्कि इंसानियत की हिफाजत करना सिखाता है, आगे कहा कि अगर रिसालत को समझना है तो विलायते अली को समझना पड़ेगा उन्होंने लोगों को दिल से बुग़ज़ और हसद मिटाने की सलाह दी और रसूले खुदा के बताए हुए रास्ते पर चलने के लिए कहा, उन्होंने कहा तालीम शिक्षा का ज़िन्दगी में बड़ा महत्व है। इसलिए अपने बच्चों को शिक्षित बनाएं। अपने बच्चों को दुनियावी शिक्षा के साथ ही दीनी तालीम भी दिलवाएं। आगे मौलाना गुलाम रसूल ने जब खानदाने रसूल पर ढाए गए जुल्म का जिक्र किया तो अकीदत मंदो की आंखें नम हो गई मौलाना ने बताया कि किस तरह इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में सब्र के साथ भरा घर लुटा दिया ताकि उनके नाना पैगम्बर मोहम्मद साहब द्वारा बसाया इस्लाम जिंदा रह सके। इन कुर्बानियों में कही छ: महीने का बच्चा अली असगर है तो कहीं 14 बरस के कासिम, कहीं कड़ियाल जवान अली अकबर है तो कहीं लश्कर का अलमदार अब्बास ए बावफा इन मासाहेब को सुनकर मोमनीन सिसकियाँ मार कर रोने लगे।
तकरीर के बाद अन्जुमन सज्जादिया ने नौहा पढा और मातम किया। इसके पूर्व सोज़ख़ानी कमर रज़ा ने किया तथा शादाब जौनपुरी ने पेशख़ानी करते हुए पढा कि- जो अश्क़ ग़म ऐ सिबते पयंबर में बहा है, वह अश्क़ ए अज़ा आशिक ए नबी अश्क़ ऐ वफा है, हम लोग दरे आले पयम्बर के दियें हैं, नाकाम बुझाने में हमें अब भी हवा है, इसे एहदे ए पूरा शौब में जो हम हैं सलामत, सदक़ा है अज़ादारी का ज़ाहरा की दुआ है।
संचालन ताबिश काज़मी ने किया, इस अवसर पर मौलाना महफूजुल हसन खा, मौलाना सै. अहमद अब्बास, मौलाना सै हसन मेहदी, मौलाना तनवीर अहमद, मुफ्ती नजमुल हसन, दानिश काज़मी, सै. मोहम्मद मुस्तफा, मोहम्मद मोहसिन आब्दी, अली रज़ा रेयाज़, जीहशम मुफ्ती, मोहम्मद रज़ा, अनवार आब्दी, मसूद आब्दी, फैज़ी आदि उपस्थित रहे।
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