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गुरुवार, 20 जुलाई 2023

मुहर्रम का महीना आज से शुरू, इमाम हुसैन की एवं कर्बला के 72 शहीदों की याद में मोहर्रम


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इमाम हुसैन व करबला के 72 शहीदों की याद में शिया समुदाय द्वारा मातम मनाया जाता है। जुलूस निकाल कर याद किया जाता है इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की अनोखी मिसाल मोहर्रम है। इसके बाद 72 शहीदों की नज्र दी जाती है, जिसमें 72 थालियों में नज्र का सामान और 72 कूजों में पानी होता है। यह देखकर कर्बला के शहीदों की तीन दिन की भूख-प्यास को याद की जाती है।

कर्बला कि जंग किसी तख्तोताज के लिए नहीं बल्कि हक, इंसानियत और इस्लाम को बचाने के लिए हुई थी। नाना के दीन को बचाने के लिए इमाम हसन इमाम हुसैन ने अपनी शहादत दे दी मगर दीने इसलाम को बचा लिया। 

मोहर्रम कब और क्यों मनाया जाता है

इनमें हजरत इमाम हुसैन व  उनके साथी करबला के 72 शहीदों की याद में शिया समुदाय द्वारा मातम मनाया जाता है। चेहलुम के जुलूस निकाले जाते है। चेहल्लुम का जुलूस में बड़ी तादाद में लोग हजारों अजादार शरीक होते है। मोहर्रम इस्लाम धर्म में आस्था रखने वालों का गम का महीना है। इस माह की बहुत विशेषता है, इसी माह मुसलमानों के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने मक्का के पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था।

कर्बला सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा, वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती इमाम हुसैन थे जो किसी भी हालत में यजीद के आगे झुकने को तैयार नहीं थे। जब यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे तो इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कूफा जाने लगे, रास्ते में ही यजीद की फौज ने हुसैन के काफ़िले को रोक लिया।

यही मोहर्रम का दिन था इमाम हुसैन का काफिला कर्बला की तपती रेगिस्तान पर रुका। हुसैन के काफिले पर पानी की रोक लगा दी थी यजीद ने, इसके बाद भी हुसैन नहीं रुके। यजीद चाहता था कि हुसैन झुके लेकिन हुसैन झुके नहीं और जंग का ऐलान हो गया।

शहादत की याद में मजलिस

शिया समुदाय द्वारा कई दिन तक मजलिसों का आयोजन किया जाता है। मोहर्रम का चांद देखते ही शिया समुदाय के लोग मजलिसों का आयोजन करते हैं। समुदाय के लोग मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों को याद करते हैं। जंग में इमाम हुसैन ने यजीद की सेना का डटकर मुकाबला किया था और फिर लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। इसीलिए इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत को याद किया जाता है।
72 शहीदों की हुई नज्र, देर रात तक चलती है मजलिसें चेहल्लुम के मौके पर अजादारों अपने घरों में कर्बला के शहीदों की नज्र दिलाकर अकीदत पेश करते। मुख्य रूप से खड़ी मसूर की दाल, दूध, शर्बत और पानी को नज्र में रखते हैं। 

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