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सोमवार, 17 जून 2024

भीमसेन एकादशी या निर्जला एकादशी कब है? कथा के साथ यहां पढ़ें


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है और बाद में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है वहीं इसे भीम एकादशी और भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है पंचांग के अनुसार इस साल निर्जला एकादशी का 18 जून 2024 को पड़ेगा कहते हैं कि इस व्रत को रखने से जातक को सालभर की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है साथ ही सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी क्यों कहा जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपी रोचक कहानी के बारे में

भीमसेन एकादशी का महाभारत से है संबंध

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पांडवों में 10 हजार हाथियों के समान ताकत रखने वाले  बलशाली भीम ने व्यासजी से कहा कि हे पितामह! भाई युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी मुझे एकादशी का व्रत करने के लिए कहते हैं, परंतु महाराज मैं भगवान की भक्ति, पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं किंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता। ऐसे में मुझे कोई उपाय बताएं।

भीम की बात सुनकर व्यासजी ने कहा कि, हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक मास आने वाली दोनों एकादशियों के दिन अन्न का सेवन मत करो. भीमसेन बोले पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करना तो मेरे असंभव है. मेरे भीतर हमेशा वृक नामक अग्नि प्रज्वलित रहती है और जब तक मैं भोजन न कर लूं तब तक वह अग्नि शांत ही नहीं होती।

इसलिए आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। यह सुनकर व्यास जी विचार करने लगे और बहुत विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।

ऐसा सुनकर भीमसेन घबराकर कांपने लगे और व्यासजी से कोई दूसरा उपाय बताने की विनती करने लगे। भीम को डरा हुआ देखकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसे निर्जला एकादशी कहते हैं और इस एकादशी के दिन अन्न तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता. इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का प्रयोग वर्जित है। इस दिन जल ग्रहण करना भी वर्जित माना गया है। इस एकादशी में सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है। यानी व्रत के अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।

व्यासजी ने भीम को बताया कि इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान ने बताया था। यह व्रत सभी पुण्य कर्मों और दान से बढ़कर है। इस व्रत मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। यह सुनकर भीम इस व्रत को रखने के लिए तैयार हो गए और साल में एक बार आने वाली निर्जला एकादशी का नियमानुसार व्रत किया. तभी से इस एकादशी को भीम एकादशी या भीमसेन एकादशी कहा गया है।


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